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जान्ह्वी / कनक लाल चौधरी ‘कणीक’

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भगीरथोॅ के घोर तप सें, ब्रह्मलोक डोललै
प्रजापति प्रगट भेलै, भगीरथोॅ सें बोललै
कहोॅ नी वत्स! कथी लेॅ तों देह ठो जराय छोॅ?
की बात छै? जेॅ सोनोॅ हेनोॅ काया तपतपाय छोॅ
जे माङना छौं-मांगि लेॅ! तों नैं कटि विलम्ब करोॅ
मनोॅ के बोॅर माङि केॅ तों दग्धता केॅ कम करोॅ

भगीरथें जेन्हैं प्रजापति स्वरूप गमलकै
तुरंत झुकी केॅ पैर पर वें मस्तको नबैलकै
फेनू मधुर स्वरोॅ में तप करै के बात बोललै
कथी लेॅ तप करै छेलै, हौ राज तखनी खोललै

कि साठ सहस्त्र सगर-पुत्र केॅ गुमानें छूलकै
वें अश्वमेघ यज्ञ करी अश्व केॅ घुमैलकै
धरा केॅ नापतें जबेॅ हौ कपिल-आश्रम पहुंचलै
तेॅ ध्यान मगन कपिल देखि काल भी आबी गेलै
अश्व जोरि के जबेॅ कि काल ठो बिलाय गेलै
ते अश्व केॅ खोजै लेली साठो सहस्त्र पहुंचलै

कपिल क ‘चोरबा’ कही केॅ सगर-पुत्र बहक गेलै
जे श्राप कपिल भेटथैं भसम बनी दहक गेलै
वही पितरोद्धार खातिर पुर्वजोॅ के तप भेलै
मतर, कृपा नहीं प्रभु! कटि टा भी तोरोॅ भेलै

-से हौ पितर के आत्मा तरै लेली अशान्त छेॅ
से हे विरंचि! होॅ प्रशन्न, गंग बोॅर दान देॅ
कि गंग ने कृपा करी मृतात्मा केॅ तारती
अशान्त पितरोॅ के कपिल-आश्रमोॅ उद्धारती

एवमस्तु! बेलि केॅ कमंडलू डोलैलकै
कपिल समीप जाय बात गंग केॅ बतैलकै
है कही प्रजापति तुरंत ुिन विलाय गेलै
प्रलय के कामना धरी केॅ गंग तमतमाय गेलै
भयंकरा ठो गर्जना त्रिलोक में छितर गेलै
प्रचण्ड अट्टहास शिव के लोक भी पहुंच गेलै

चन्द्रशेखरें जबेॅकि ध्यान में हीं पैलकै
-ते बोॅर व्यर्थ देखथैं जटा फेनू बढ़ैलकै
तेॅ शीश के जटा में गंग आवि केॅ समाय गेली
प्रलय करै के कामना तुरन्त हीं भुलाय गेली

भगीरथेॅ प्रयास बात सुरसरि बताय केॅ
धरा उतारी गंग केॅ कपिल तरफ घुमाय केॅ
से गोमुखी छोड़ी केॅ गंग जब धरा उतर गेली
तेॅ ऋषिकेश, हरद्वार, प्रयाग, काशी पहुंचली
सब ठियाँ उद्धार करने अंगभूमि जब अैली
तेॅ बीच डगर ध्यान मग्न जन्हू-मुनि देखली

प्रबल तरंग में प्रचण्ड धार ठो देखाय केॅ
मुनि के ध्यान भंग करी हटै लेली डराय केॅ
-से सिद्ध मुनि समझ गेलैऊ गंग के उपहास केॅ
-से एक चुरू के आचमन सें उदर कैलकै बासवें
जन्हु के उदर में गंग शिव जटा रङ घूसलै
भगीरथोॅ के सौंसे ठो परयास फेनू टूटलै

विनय करी केॅ जन्हू केॅ तपोॅ के बात बोललै
औ गंग सें तराय बात मुनि जी सें खोललै
भगीरथोॅ प्रयास देखि जन्हू भी दरप गेलै
-से जाँघ चीरथैं ही गंग कपिल लग सरक गेलै
यही सें अंग भूमि में मां गंग के इतिहास छै
जहाँ कि गैवीनाथ साथें जन्हू के श्री प्रवास छै

‘जन्हु’ जंघा जैली गंगा ”जान्ह्वी“ बनली तबेॅ
नाथ अजगैवी कृपा सें अंग में अैली जबेॅ
शिव-दुलारी होलि पूज्या जन्हूं के आश्रम ठियाँ
रावणेश्वर, लिंग-एकादश केॅ जिनी छैली हियाँ
सौॅन मैहना जान्ह्वी जल लै जेॅ देघर जाय छै
जान्ह्वी के सङग-सङगे शिव कृपा भी पाय छै
धन्य छै अंगोॅ के धरती, धन्य जान्ह्वी, गैवीनाथम्
‘जन्हु’ मुनि के धन्य तप-बल, धन्य बाबा बैद्यनाथम्