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जान-पहचान / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
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रोज़ शीशे में देख लेते हैं, नाज़ करती हुई निगाहों से, जान-पहचान हो गई शायद अजनबी-अजनबी गुनहों से। </poem>