भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जान जाई त जाई / जनकवि भोला
Kavita Kosh से
जान जाई त जाई, ना छूटी कभी
बा लड़ाई ई लामा, ना टूटी कभी
रात-दिन ई करम हम त करबे करब
आई त आई, ना रुकी कभी
बा दरद राग-रागिन के, गइबे करब
दुख आई त आई, ना झूठी कभी
साथ साथी के हमरा ई जबसे मिलल
नेह के ई लहरिया, ना सूखी कभी