जान पहचान हो गई ग़म से
शुक्रिया आप मिल गये हम से
तलखिये ग़म न पूछिए हम से
मरने वाले हैं आपके ग़म से
ये हवा जो जिगर को डसती है
हो के आई है जुल्फ़े-बरहम से
चैन जिनको कभी नहीं मिलता
दहर में लोग हैं बहुत हम से
तेरी चाहत में जो जलाये थे
हो गये हैं चराग़ मद्धम से
क्यों भिगोती हो मेरे दामन को
पूछता है ये फूल शबनम से
लौट कर आओगे हमारे पास
रूठ कर जाओगे कहां हमसे।