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जान से जाते रहे जान से जाना न गया / निर्मल 'नदीम'

जान से जाते रहे जान से जाना न गया,
दिल गया इश्क़ में पर दिल का लगाना न गया।

मौत के बाद भी इक बोझ उठा रक्खा है,
सर तो जाना ही था पर हैफ़ के शाना न गया।

कल फ़रिश्तों ने बहुत खींचा पकड़कर दामन,
छोड़कर तुझको मगर तेरा दीवाना न गया।

आज भी आ के वो आंखों में चहक उठता है,
गुलशन ए दिल से कभी तेरा ज़माना न गया।

ले के अंगड़ाई क़यामत ने बदल दी दुनिया,
वक़्त के लब से मगर मेरा फ़साना न गया।

इस तरह दोनों तअल्लुक़ का भरम रखते रहे,
रूठना उसका भी अपना भी मनाना न गया।

उसके नाख़ून की रानाई बता देती है,
उसकी आदत से अभी दिल का दुखाना न गया।

ये अलग बात के कुदरत ने पलट दी बाज़ी,
फैसला इश्क़ के हक़ में कभी माना न गया।

इब्तिदा से ये है दस्तूर ज़माने का नदीम,
दिल को समझा न गया दर्द को जाना न गया।