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जापानी मछुआरा / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय

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एक युवा जापानी मछुआरे की मौत हो गई
समुद्र में एक बादल से।
प्रशान्त महासागर में एक निस्तेज पीली शाम को
यह गाना मैंने उसके दोस्तों से सुना था

जिसने भी खाई वह मछली जो पकड़ी हमने, वह मर गया
जिसने हमारे हाथों को छुआ, वह मर गया
यह जहाज़ एक काला ताबूत है,
 अगर आप इस जहाज़ की सीढ़ियों तक भी आएँगे तो मर जाएँगे

जो लोग हमारी पकड़ी मछली खाते हैं, मर जाते हैं,
एकदम नहीं, लेकिन धीरे-धीरे,
धीरे-धीरे उनका गोश्त गलकर गिर जाता है।
जो लोग हमारी मछली खाते हैं, मर जाते हैं,

जो लोग हमारे हाथों को छूते हैं, मर जाते हैं।
हमारे वफादार, मेहनती हाथ
नमक और तेज़ धूप से धुले
जो भी लोग हमारे हाथों को छूते हैं, मर जाते हैं,
एकदम नहीं, मगर धीरे-धीरे,
धीरे-धीरे उनका गोश्त पिघलकर गिर जाता है।
जो लोग हमारे हाथों को छूते हैं, मर जाते हैं।

ओ बादामी आँखों वाली ! तुम मुझे भूल जाओ।
यह जहाज़ एक काला ताबूत है,
यदि तुम इस जहाज़ की सीढ़ियों के पास आओगी तो मर जाओगी।
बादल हमारे ऊपर से गुज़र गया है।

ओ बादामी आँखों वाली लड़की ! मुझे भूल जा तू
मेरी सजनी ! मुझे अपने गले मत लगा तू,
मुझसे यह मौत तुझ तक पहुँच जाएगी
भूल जा मुझे तू, ओ छोरी ! बादामी आँखॊं वाली

यह जहाज़ एक काला ताबूत है।
 मुझे भूल जा, बादामी आँखों वाली
तुम्हारे पास मेरा बच्चा है
जो एक सड़े हुए अण्डे से सड़ जाएगा
यह जहाज़ एक काला ताबूत है
यह समुद्र एक मृत समुद्र है
मनुष्यो ! , तुम कहाँ हो
कहाँ हो तुम लोग?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय