जापान : दो तस्वीरें- 1 / मंगलेश डबराल
(सूनामी की तस्वीरें देखने के बाद)
भूकंप, सूनामी विकिरण से घिरी हुई
एक छोटी-सी बच्ची अथाह मलबे में रास्ता बनाती चली जा रही है
वह सत्रह अक्षरों से बने हुए एक हाइकू जैसी दिखती है
उजड़े हुए घरों के बीच एक अकेला आदमी साइकिल पर कहीं जा रहा है
एक शरणार्थी शिविर के सर्दी में एक वृद्ध चाय मिलने की उम्मीद में है
एक औरत अपने घर के खंडहर से बिस्तर खींचकर समेट रही है
एक गुड़िया कीचड़ के समुद्र में पड़ी हुई है
हाइकू जैसी छोटी-सी बच्ची
अपने पीछे तस्वीरें छोड़ती हुई चली जाती है
तस्वीरें जमा होती रहती हैं
उसकी ख़ुद की तस्वीर एक घर के खंडहर में फर्श पर चमक रही है
एक क्षत-विक्षत समय अपनी विकराल छायाएं फेंकता है
थर्राती हुई धरती की छाया प्रचंड पानी की छाया
ज़हरीली हवा की छाया
एक अवाक् हाइकू की तरह सत्रह नाज़ुक अक्षरों की बनी हुई वह
चलती जाती है उस तरफ़
जहाँ बिछुड़े हुए लोग एक दूसरे को फिर से मिलने की बधाई दे रहे हैं
और फिर बहुत सारी मशीनें हैं
जो हर आनेवाले के शरीर में विकिरण नापती हैं।