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जाबो अस्पताल / ध्रुव कुमार वर्मा
Kavita Kosh से
गजब अकन लइका जीवन के काल,
चलव दीदी जाबो अस्पताल।
बाबू हावय एक झन,
अऊ एकझन हावय नोनी।
मया के मारे आगू मां राखंव,
आंखी कस सलौनी।
माटी खपना के घर हे नानक
थोड़ बहुत खेती।
नोनी के ददा बूता करय
छोड़के एती तेती।
झनिंच पूछ ते हमर सुख के हाल
चलव दीदी जावो अस्पताल॥1॥
जतके लइका होथे ततके,
होथे ऊपर खरचा।
कमइ के पइसा पूरय नहीं
करे ले परथे करजा
करजा के मारे कनिहा टूटय
खेती खार बेचा थे।
जेने पाथे तेने तहले
बेदरा कस नचाथे।
जिनगी के होथे बोकरा हलाल,
चलव दीदी जावो अस्पताल॥2॥
घेरी भेरी छट्ठी के मारे
देह हा होथे खोइला
सोना असन चोला होथे
चारेच दिन में कोइला।
रात दिन के किलिर कालर
अइसन महंगाई
फादा मं फंदे मछरी असन
होथे करलई।
तेमा मारे रोगहा दुकाल,
चलव दीदी जाबो अस्पताल॥3॥