जामुन का पेड़ / सूर्यभानु गुप्त
हम हैं, ख़याले यार है, जामुन का पेड़ है,
बारिश का इंतजार है, जामुन का पेड़ है।
अश्कों में भीग कर जो, मिठाता है और भी।
बूढ़ों का ये विचार है, जामुन का पेड़ है।
मिलते हैं चंद साए, धुँधलकों में अब जिधर,
इक पीर का मज़ार है, जामुन का पेड़ है।
सावन का इश्तिहार है, उस शोख़ का बदन,
बिजली, घटा, मल्हार है, जामुन का पेड़ है।
सावन चढ़े पड़ोस के, दरिया के शोर में,
इक अजनबी का प्यार है, जामुन का पेड़ है।
मानेगी क्या उखाड़ के, जड़ से ही अब अरे,
इक संगदिल बयार है, जामुन का पेड़ है।
शब्दों की पींग मारते, झूलों का सिलसिला,
जिस सोच पर उधार है, जामुन का पेड़ है।
टापें बिछा रही हैं, अंधेरे में जामुनें,
इक तेज घुड़सवार है, जामुन का पेड़ है।
बैठा है तनहा बाग में, एक बूढ़ा आदमी,
सावन की यादगार है, जामुन का पेड़ है।
रस्ता न भूलिएगा, दुखों के मकान का,
जिस ओर को दुआर है, जामुन का पेड़ है।