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जामुन / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
चलो, आज जामुन खाएँगे
कुछ घर पर भी ले आएँगे
जामुन के फल बहुत रसीले
पके हुए, हैं गहरे नीले
भैय्या ज़रा संभल कर चढ़ना
कहीं न हो जाए दुर्घटना
बहुत दूर ऊपर मत जाना
बस, वह पतली डाल हिलाना
जामुन पके टपक जाएँगे
फूँक फूँक कर हम खाएँगे
अरे! नहीं, वह गरम नहीं है
धूल लगी बस कहीं-कहीं है
खाने में जल्दी मत करना
गुठली थूको, नहीं निगलना
दाग़ लग गए हैं जी भर कर
छुटकी की सफ़ेद फ्रॉक पर
हुए हाँथ, मुँह नीले सारे
मजा आ गया, लेकिन प्यारे।