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जाम उल्फ़त के निगाहों से पिलाता है मुझे / ईश्वरदत्त अंजुम
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जाम उल्फ़त के निगाहों से पिलाता है मुझे
आके खाबों में कई बार जगाता है मुझे
गुमरही में नहीं मालूम कहां है मंज़िल
मेरी मंज़िल का पता कोई बताता है मुझे
पूछता है वो मिरा हाल मुरव्वत से मगर
और फिर ज़हर भरा जाम पिलाता है मुझे
मेरी तस्वीर में खुद रंग भरे थे जिसने
अपने हाथों से वही आज मिटाता है मुझे
हर घड़ी तंज़ ही हटा है ज़बां पर उसकी
शेर कहता है वो महफ़िल में सुनाता है मुझे।
मैं कि डरता न था तूफां की बला-खेज़ी से
अब ये आलम है कि साया भी डराता है मुझे
है मुझे अपने ख़ुदा पर ही भरोसा अंजुम
अब मैं गिरता हूँ तो वो आके उठाता है मुझे।