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जाम / शंख घोष / प्रयाग शुक्ल
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भालू के पेट में भालू के तलुवे
स्थिर है काल जो असीम।
लटकाये गला है जि़राफ़
उछल-उछल पड़ती ज़ेब्रा क्रासिंग
हंस वे कई हज़ार
चाहते झपटना पंख दूसरों के
बालक भिखारी भरी दोपहर
डुगडुगी बजाता और गाता हुआ गाना।
रह-रहकर हिलता है माथा
चाहे हो तरुण चाहे पुराना।
कण्डक्टर कहता पुकार कर
पीछे से आगे हो जाना।
मूल बंगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
(हिन्दी में प्रकाशित काव्य-संग्रह “मेघ जैसा मनुष्य" में संकलित)