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जायसी री पीड / सांवर दइया
Kavita Kosh से
म्हैं काळो
म्हैं काणो
म्हैं कोझो
थांनै हंसता देखूं तो लखावै
हाल मरियो कोनी
शेरशाह
म्हैं माटी हो कदै ई
इण गय सूं पैली
जाणता हुवोला थे ई
रचना पड़रूप हुवै सिरजणियै रो
म्हारी कणाई
म्हारी कोजाई
उणियारो है बींरो ई !