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जारी है अंतंद्वंद्व / सदानंद सुमन
Kavita Kosh से
तुम से कही नहीं
मैंने अब तक
वह बात
जो जाने कब से
काँप कर रह जाती है
आते-आते
जुबान तक
अटक जाती
एक गाँठ की तरह
गले के नीचे
हर बार
दिखे नहीं कभी
फुर्सत में तुम
रहे व्यस्त निर्माण में
खुद की सुरक्षा के लिए
अपना ठोस कवच!
जारी है तब से
मेरा अंतर्द्वन्ध