जा, जर्जरित भारत, जा ! आ, नवभारत, तू आ ! / सुब्रह्मण्यम भारती
ओ दुर्बल कन्धोंवाले, भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ दबे हुए सीनेवाले, भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ तेजहीन मुखवाले, भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ निष्प्रभ आँखोंवाले, भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ कातर, दीन-हीन वाणी वाले
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ कान्तिहीन तनवाले भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ भयभीत दिलवाले, भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
ओ ओछी-छूछी हरकतों वाले, भारत !
जा जा जा, जा तू भाग !
आ आ आ, आ तू आ !
कान्तियुक्त आँखों वाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
दृढ़ संकल्पोंवाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
मनमोहक वाणीवाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
ताक़तवर कन्धोंवाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
निर्मल मति-गति वाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
ओछेपन को देख खौलनेवाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
दीनों के दुख में रोनेवाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
वृषभ शान से चलनेवाले भारत आ !
आ आ आ, आ तू आ !
फिर कहीं नहीं जा
यहीं रह जा !
मूल तमिल से अनुवाद (कृष्णा की सहायता से) : अनिल जनविजय