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जा कहाँ रहा है विहग भाग? / हरिवंशराय बच्चन

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जा कहाँ रहा है विहग भाग?

कोमल नीड़ों का सुख न मिला,
स्नेहालु दृगों का रुख न मिला,
मुँह-भर बोले, वह मुख न मिला, क्या इसीलिये, वन से विराग?
जा कहाँ रहा है विहग भाग?

यह सीमाओं से हीन गगन,
यह शरणस्थल से दीन गगन,
परिणाम समझकर भी तूने क्या आज दिया है विपिन त्याग?
जा कहाँ रहा है विहग भाग?

दोनों में है क्या उचित काम?-
मैं भी लूँ तेरा संग थाम,
या तू मुझसे मिलकर गाए जीवन-अभाव का करुण राग!
जा कहाँ रहा है विहग भाग?