भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जा चुका है सब तो अब क्या जाएगा / ‘अना’ क़ासमी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जा चुका है सब तो अब क्या जायेगा
यार पाँसा फेंक देखा जायेगा

खुद तराशीदा लकीरें ही न पढ़
बोल जोगी साल कैसा जायेगा

है कड़ी ये धूप कुछ साया भी हो
वरना ये पौधा तो कुम्हला जायेगा

तशनगी मेरी हंसेगी और सुन
अबी रूत में अब्र प्यासा जायेगा

और बढ़ जायेगी धरती की थकान
बूढ़े बरगद का जो साया जायेगा

दिल वो शै है शायरी के शहर में
जिस क़दर टूटेगा, मँहगा जायेगा