भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जा चुका है सब तो अब क्या जाएगा / ‘अना’ क़ासमी
Kavita Kosh से
जा चुका है सब तो अब क्या जायेगा
यार पाँसा फेंक देखा जायेगा
खुद तराशीदा लकीरें ही न पढ़
बोल जोगी साल कैसा जायेगा
है कड़ी ये धूप कुछ साया भी हो
वरना ये पौधा तो कुम्हला जायेगा
तशनगी मेरी हंसेगी और सुन
अबी रूत में अब्र प्यासा जायेगा
और बढ़ जायेगी धरती की थकान
बूढ़े बरगद का जो साया जायेगा
दिल वो शै है शायरी के शहर में
जिस क़दर टूटेगा, मँहगा जायेगा