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जा तुझे भी मिले खुशी कोई / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
जा तुझे भी मिले खुशी कोई
बात समझे तो दर्द की कोई।
मुझको अपना बना के बैठा है
मेरे घर आ के अजनवी कोई।
सब्र करके मैं रह गया प्यासा
पास बहती रही नदी कोई।
मुझको तेरे करीब लायी है
मेरे भीतर की तश्नगी कोई।
दर्द ख़ुद ही जबाँ पे आता है
यूँ ही कहता नहीं कभी कोई।