♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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जा भाग्यानी तू मैत न्है जा
मेरो रैवार बई मूं ली जा
इनु बोल्यान तुम बई मूं मेरी
खुद लगी छ बल बई तेरी
बाबा को बोयान तुमन भलों करे
रुपयों खैक मेरो बुरो करे
बाबा न दिने चौ डाण्डों पोर
भायों न करे रुपयों जोर
भौजी क बोल्यान मैं जागी रौ लो
यूँ की हालात तबो लौलो
ये गौं छ पाणी दूरो
मऊ पूस क छ जाड़ो बूरो
भावार्थ
--'जा भाग्यशालिनी, तू पीहर को चली जा,
मेरा सन्देश माँ के पास ले जा ।
ऎसे कहना : तुम मेरी माँ हो,
तुमसे मिलने की बहुत भूख लगी है, माँ!
पिता से कहना--तुमने अच्छा किया,
रुपए खाकर तुमने मेरा बुरा कर डाला ।
पिता ने मुझे चार पहाड़ों के पार दे दिया
भाइयों ने भी रुपया लेने पर ज़ोर दिया ।
भाई जी से कहना : मैं बाट जोहूंगी
यहाँ की हालत तभी सुन लेना ।
इस गाँव का पानी बहुत दूर है, माँ!
माघ-पूस का जाड़ा भी बहुत बुरा है ।'