जा मुख देखन को नितही रुख
दूतिन दासिन को अवरेख्यो ।
मानी मनौतीहू देवन को
'हरिचंद' अनेकन जोतिस लेख्यो ।
सो निधि रूप अचानक ही मग में
जमुना जल जात मैं देख्यो ।
सोक को थोक मिट्यो अब आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।
जा मुख देखन को नितही रुख
दूतिन दासिन को अवरेख्यो ।
मानी मनौतीहू देवन को
'हरिचंद' अनेकन जोतिस लेख्यो ।
सो निधि रूप अचानक ही मग में
जमुना जल जात मैं देख्यो ।
सोक को थोक मिट्यो अब आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।