भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जा मुख राम नाम न आवे / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जा मुख राम नाम न आवे।
भूले हूँ जे राम जपे ना सर्प विलासत जावें।
नर कूकर सूकर सम डोलत-घर-घर पोंछ हिलावे/जामुख
धरम सनातन छोड़छाड़ के औरवें धरम सिखावे।
परहित बात करत ना कबहूँ निज स्वारथ देखलावे/जामुख
द्विज महेन्द्र विनवों का भाई विरथा जनम गँवावे।
जा मुख राम ना आवे।