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जा मेरी बेटी, जा / कमलेश

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(फ्रेडेरिको खार्सिया लोर्का के प्रति)

भोर के तारे ने
न्यौता सारा जवार
मेरे
ब्याह दिन ।

बिजली गिरी, तड़ाक
नीम के पेड़ पर,
मेरे ब्याह दिन ।
टपकता रहा टप-टप
लहू
मेरी चूनर पर ।

सूरज की बेटी की
आँखों में आँसू
ब्याह दिन ।

खेतों में उपले
बीने
तीन बरस,
ढोया खर-पात
सिर पर
तीन बरस,

वह देखने, पिता ने, भेजे
कोसों तक
पण्डित, हज्जाम ।

तारों ने तैयार किया
सारा ज्यौनार
ब्याह दिन;
टपकता रहा लहू
नीम के पेड़ से;
दाग़ ही दाग़
मेरी चूनर पर ।

माँ, मेरी, बता !
क्या करूँ?
कहाँ धोऊँ चूनर ;
कैसे छुटाऊँ दाग़ ;
कैसे सुखाऊँ चूनर ।

जा, मेरी बेटी जा
राजा के बाग़ में,
फूल ही फूल खिले
सूरज की छाँव में,
वहीं पर नदी में
धोना अपना चूनर,
लहू बह जाएगा
नदी की धार में,

चूनर सूख जाएगी
सूरज की छाँव में,
सूरज की बेटी जा
राजा के बाग़ में ।