जा रही हो / प्रभात पटेल पथिक
जा रही हो, जाओ, हो सानंद जाओ! 
हर कदम चूमे तुम्हारे पग सफलता। 
मैं मना लूँगा स्वयं को तुम मेरी चिन्ता न करना! 
मुझे मन से मिटा देना नींद तुम अपनी न हरना! 
हो सकेगा तो मन: मस्तिष्क को मैं स्थिर करूँगा। 
जाओ, जीवन के सभी आनन्द पाओ! 
कठिनता के स्थान सब ले-ले सरलता। 
कुछ दिनों तक मैं अचेतन रहूँगा तुम भय न करना। 
तुम खुशी के प्रति क्षणों में, एक भी अपव्यय न करना। 
मैं स्वयं के हित नए आयाम फिर से खोज लूँगा। 
जाओ, उन्नति के प्रकाशोत्सव मनाओ, 
दीप खुशियों का रहे नित द्वार जलता। 
कवि-हृदय का क्या? हमारा काम ही है अश्रु-गायन। 
विरह के अध्याय लिखना और नित उनका पारायण। 
मैं पुनः अपने पुराने पथों का राही बनूँगा। 
जाओ, हर दिन फलो-फूलो, मुस्कुराओ! 
मुझे दे देना हृदय की सब विकलता। 
जा रही हो, जाओ, हो सानन्द जाओ
हर कदम चूमे तुम्हारे पग सफलता।
	
	