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जिंदगी की तलाश / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
मुझे ढूँढती तलाशती
जि़ंदगी काफी बूढ़ी हो चली
बचपन कब गुजरा
जवानी कब ढली
नहीं कोई ख़बर
सपनो से पता पूछा होगा शायद जि़ंदगी ने
उन्हें क्या पता कहाँ रहता हूँ मैं
असलियत से पूछ लिया होता
तो मिल जाती जि़ंदगी मुझे
सुना है तलाश अब भी जारी है
देखें कब मिलती है जि़ंदगी हमें
वरना मौत से भी हमें कहाँ दुश्वारी है।