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जिंदगी की ये नदी गहरी नहीं है / रंजना वर्मा

जिंदगी की ये नदी गहरी नहीं ।
पर चली जब वेग से ठहरी नहीं।।

लूट लेते हैं पड़ोसी भी उसे
द्वार जिस घर के खड़ा प्रहरी नहीं।।

कौन ऐसी लहर को कहता लहर
सिंधु तल पर जो कभी लहरी नहीं।।

कह हृदय में जो छिपी है बात वो
सुन रही दुनियाँ हुई बहरी नहीं।।

टूट कर रोया गगन प्रतिदिन मगर
शुष्क धरती की दशा सुधरी नहीं।।

लें जरा सा बैठ पादप के तले
जेठ की यह कोई' दोपहरी नहीं।।

प्रजारंजन में सफल होता वही
देश की जिस नीति है दुहरी नहीं।।