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जिंदगी ठहरी हुई थी इक रवानी दे गया / रंजना वर्मा
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जिंदगी ठहरी हुई थी इक रवानी दे गया
हम जिसे थे भूल बैठे वो कहानी दे गया
तोड़कर नाते गया यूँ तो नयी ही राह पर
जाते जाते मदभरी यादें सुहानी दे गया
रात हर करवट बदलते बीत जाती है यूँ ही
ख़्वाब में हाथों में कोई रातरानी दे गया
जो किया वादा भुलाया बढ़ गयीं बेचैनियाँ
दर्दे दिल की वो हमें अच्छी निशानी दे गया
है लगी उसको हवा बदले जमाने की मगर
ओढ़ने को वो हमें चादर पुरानी दे गया
सोचते थे जिंदगी में हम न रोयेंगे कभी
दर्द फुरकत का मगर आंखों में पानी दे गया
अब किसीसे भी शिकायत या नहीँ कोई गिला
मुफ़लिसी के दौर में बिटिया सयानी दे गया