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जिंदगी दर्द के शोलों से बचाऊँ कैसे / रंजना वर्मा

जिंदगी दर्द के शोलों से बचाऊँ कैसे
जो मेरे पास नहीं उसको बुलाऊँ कैसे

दिल ग़मे हिज्र के आतिश में पिघलता जाये
खो गया है जो उसे ढूंढ़ के लाऊँ कैसे

देख मुझको जो खिला करता है फूलों की तरह
दिल किसी और का है उस को बताऊँ कैसे

लौ ठहरती ही नहीं तेज़ हवा के आगे
ऐसे तूफान में अब शम्मा जलाऊँ कैसे

उसको यादों में बसाना भी हुआ मजबूरी
साँस में मेरी है शामिल वह भुलाऊँ कैसे
 
हुई हैं बेलिबास अब शज़र की सब शाख़ें
दौरे पतझार में फूलों को खिलाऊँ कैसे

जो सितमग़र मेरी नज़रों से दूर रहता है
उसके एहसास को सीने से लगाऊँ कैसे