जिंदगी में मुस्कुराने का मज़ा कुछ और है।
दर्द में भी गुनगुनाने का मज़ा कुछ और है।
हो नदी उफनी हुई पर नाव बिन पतवार हो,
बैठ उसपर पार जाने का मज़ा कुछ और है।
खो गया हो जो कभी गिर हाथ से यदि रेत में,
फिर उसे इक बार पाने का मज़ा कुछ और है।
मौत का आतंक हो जिस युद्ध के मैदान में,
बच वहाँ से लौट आने का मज़ा कुछ और है।
वक्त तो बैठा ही है मरहम लगाने के लिए,
हाथ उसके मार खाने का मज़ा कुछ और है।