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जिंदगी शायद इसी को कहते हैं / अर्चना अर्चन

कुछ बेबसी, कुछ लाचारी
कुछ ख्वाहिशें, किस्मत की मारी
कुछ मंजिलें, कुछ रास्ते
कुछ प्यार सबके वास्ते
चीथड़े होती सौगात,
जिसे हर वक्त सीते रहते हैं
जिंदगी शायद इसी को कहते हैं

कभी धूप, कभी छाया
कहीं फाका, कहीं माया
कुछ भूख भी, कुछ प्यास भी
एक दिन बदलेगी ये आस भी
मिल जाएगी किसी दिन
इस पर ही जीते रहते हैं
जिंदगी शायद इसी को कहते हैं