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जिंदा रहने की कीमत / रेखा चमोली

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राजशेखर ने अपनी जान दे दी
नदी में कूदकर
सात दिन की दौड़ धूप के बाद
उसकी लाश मिली
राजशेखर चला गया
हर सुख-दुख से बहुत दूर
जरा भी न सोचा
पीछे छूट रहे
चार किशोर होते बच्चों और
अंधी पत्नी के बारे में

छोटे से चौक में
एक ओर बंधी दो भैंसे
एक बोरी के ऊपर सुखाने डाली मिर्चें
थोड़ी-सी छेमियों की फलियां

वहीं धूप में
फटे तिरपाल के टुकड़े पर बैठी
असमय सूखी फसल सी
राजशेखर की पत्नी गुड्डी देवी

आंखे रो-रोकर
बाहर निकलने को हो आयी हैं
दुख
पति के जाने से अधिक
अपने और बच्चों के भरण पोषण का है

बताती है
कई दिनों से उलझा-उलझा रहता था
नींद में भी सिहर जाता
कहता कई लोग
सफेद कपड़े पहने
पीछा कर रहे हैं उसका

हमारी तो किस्मत ही खराब है
पहले मेरी आंखे गई
बहुत इलाज कराया
चंडीगढ़ तक
मेरा तो यह हाल है
कोई दे देगा तो खा लूंगी
फिर ये चार-चार बच्चे
नाते रिश्तेदार तो जीते-जी न थे
अब कौन है हमारा
हजार रूपये थे घर में
इनकी ढ़ूढ में ही खत्म हो गए
राशन-पानी था ही कितना
बहनजी
इन बच्चों का कुछ इंतजाम
कर सको तो कर देना
मैं भी कहीं गिर पड़ कर
अपनी जान दे दूंगी

चारों बच्चे
मां को घेर कर बैठ गये
छोटा बेटा दहाड़े मार रोने लगा

कौन थे ये सफेद कपड़े पहनकर
राजशेखर के सपनों में आने वाले
क्या वे
जिनकी उधारी के चलते
ठप्प हो चुकी थी उसकी दुकान
क्या वे सब
आपसी रंजिश के चलते
जिन्होंने नहीं बनने दिया
उसका बीपीएल कार्ड और
पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र
या फिर वे
जिन्होंने रात-दिन झगड़ा कर
डरा धमका
किया उसे मजबूर
गांव में बना-बनाया मकान छोड़
जंगल के बीच मकान बना रहने को
जहां ग्यारह बजे ही छिप जाती है धूप
घूमते हैं रात-बिरात जंगली जानवर
वे चमकते बीज
जो बड़े उत्साह से लाया था वह
फिर जिन खेतों से
सालभर पलता था परिवार
दो महीने भी न खा पाया भरपेट

या फिर हम सब
जिन्होंने सारे हालात जानते-बूझते
नहीं की उसकी कोई मदद

राजशेखर नहीं बन पाया
बाजार के मुताबिक
तेज-तर्रार, दो की चार करने वाला

राजशेखर
अब क्या करेंगे
तुम्हारे बच्चे
कौन-सा रास्ता चुनेंगे
जिंदा रहने के लिए
लड़ेंगे परिस्थितियों से
या सीख लेंगे बाजार के दाव-पेंच

काश
वे जो भी रास्ता चुने
उससे उन्हें या
उनके कारण किसी को
न करना पड़े वरण
अकाल मृत्यु का।