जिएँ हमारे कृष्णन भैया / प्रकाश मनु
हम छोटे थे, तभी बड़े थे, ख़ूब बड़े थे कृष्णन भैया,
बड़े हुए हम, तब भी तो हैं बड़े-बड़े से कृष्णन भैया ।
लगता वो हरदम ऐसे थे, हरदम प्यारे कृष्णन भैया,
प्यारे तो सब ही हैं, लेकिन प्यार से प्यारे कृष्णन भैया ।
कृष्णा भाभी मिलीं तो हो गए कृष्णन भैया गंगासागर,
प्यार छलकता छल-छल, छल-छल, चाहे भर लो जितनी गागर ।
सीटू भैया के डैडी हैं, इट्टेसन पर टाटा बाबू,
चोगा लगा कान से, झटपट सभी गाड़ियाँ होतीं काबू ।
पूछें आती सभी गाड़ियाँ, अब हम आएँ टाटा बाबू,
आओ, आकर जल्दी जाओ—हाथ हिलाएँ टाटा बाबू ।
यों कर ली जब पूरी डूटी, नहीं गए शिमला या ऊटी,
बोले, लखनपुरी चलते हैं, वहीं गड़ेगी अपनी खूँटी ।
फ़ुर्सत के दिन हैं, पर हर पल राह दिखाएँ कृष्णन भैया,
हर मसले पर सोची-समझी राय बताएँ कृष्णन भैया ।
किरकिट हो या राजनीति हो, सब पर जमकर बोलें भैया,
बोल-बोलकर तोलें भैया, तोल-तोलकर बोलें भैया ।
आईपीएल के चौके-छक्के, विकेट गिना दें झटपट-झटपट,
मसला घर का हो बाहर का, हल करते बस चटपट-चटपट ।
कोई मुश्किल में है घर में, दिया सुनाई भैया का स्वर,
और ख़बर हो कोई अच्छी, भैया मन को कर देंगे तर ।
भाइया जी अब नहीं, तो अपने भाइया जी हैं कृष्णन भैया,
प्रेम बरसता आँखों से ज्यों माता जी हैं कृष्णन भैया ।
छूट गई अब साइकिल, पैदल भी चल लें तो बड़ी बात है,
इसी साइकिल ने टेसन तक सबको दे दी मगर मात है ।
रात हुई कितनी भी लेकिन साइकिल उनकी दौड़ी जाती,
टाटा बाबू के संग जैसे ड्यूटी वह भी ख़ूब निभाती ।
चलती जाती, चलती जाती मेरे सपनों में वह साइकिल,
टाटा बाबू नहीं थकेंगे, नहीं थकेगी उनकी साइकिल ।
बैठ इसी पर टाटा बाबू ने चलवा दीं ट्रेनें सारी,
बैठ इसी पर टाटा बाबू ने पूरी यह धरा हिला दी ।
देसी ठाट यही भैया का, हमको सबसे ज़्यादा भाता,
आ पाएँ या नहीं, मगर लखनऊ सभी को ख़ूब बुलाता।
भइया जी के प्यारे बेटे, हम सबके वे प्यारे भाई,
सब बच्चों के प्यारे डैडी, जिनसे मिलना है सुखदायी ।
अमर रहे यह अकथ कहानी, स्वस्थ रहें अब भैया अपने,
खूब हँसें और हँसी लुटाएँ, उन पर वारी सारे सपने ।
जैसी मीठी ममता उनमें, वैसी नहीं किसी में भाई,
भैया तो हैं भाभी जैसे, भाभी जैसे कृष्णन भाई ।
प्यार बाँटते इसी तरह बस जिएँ हमारे भैया-भाभी,
बने रहें इस पूरे घर के आँख के तारे भैया-भाभी ।
(प्र.म., 17.5.2011)