भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिकर उसका न कर फ़साने में / ब्रह्मदेव शर्मा
Kavita Kosh से
					
										
					
					जिकर उसका न कर फ़साने में। 
पता जिसका नहीं जमाने में॥
दिलों में दूरियाँ बहुत-सी हैं। 
समय लगता है पास आने में॥
किसी का घर दखल किसी का है। 
बहुत मुश्किल यहाँ निभाने में॥
फरक ज़्यादा नहीं दिखा हमको। 
नये इस दौर में पुराने में॥
पता है पाप पुण्य का लेकिन। 
लगे हैं पाप ही सजाने में॥
जवानी जोश में गुजरती है। 
बुढ़ापा दर्द के तराने में॥
 
	
	

