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जिक्र होता है तरक्क़ी का / विनीत पाण्डेय

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जिक्र होता है तरक्क़ी का तो हर इक बात में
बन रही सड़कें हैं स्वीमिंग पूल हर बरसात में
भरने पर्चा जा रहे नेता इलेक्शन के लिए
देख के लगता है ख़ुद की जा रहे बारात में
एकता है देश में ख़तरा सियासत के लिए
इसलिए वह बाँटते सबको धरम में जात में
कर रहे तकरीर लम्बी आज बस्ती में वह फिर
पाँच वादे, चार जुमले लाए हैं सौगात में
जेब कतरे दो धरे थे दिन में फोटो भी खिंची
शहर में सोलह हुई फ़िर वारदातें रात में