भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिक्र होता है तरक्क़ी का / विनीत पाण्डेय
Kavita Kosh से
जिक्र होता है तरक्क़ी का तो हर इक बात में
बन रही सड़कें हैं स्वीमिंग पूल हर बरसात में
भरने पर्चा जा रहे नेता इलेक्शन के लिए
देख के लगता है ख़ुद की जा रहे बारात में
एकता है देश में ख़तरा सियासत के लिए
इसलिए वह बाँटते सबको धरम में जात में
कर रहे तकरीर लम्बी आज बस्ती में वह फिर
पाँच वादे, चार जुमले लाए हैं सौगात में
जेब कतरे दो धरे थे दिन में फोटो भी खिंची
शहर में सोलह हुई फ़िर वारदातें रात में