जिगर सुलगता हुआ दिल बुझा बुझा होगा / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’
जिगर सुलगता हुआ, दिल बुझा बुझा होगा
ख़बर न थी सिला-ए-आशिक़ी बुरा होगा!
ख़ुजिस्ता-सर कोई, कोई शिकस्ता-पा होगा!
यह राह-ए-इश्क़ है, अब इस में और क्या होगा?
इक अश्क-ए-ग़म ही मिरी ज़िन्दगी का हासिल है
जो यह भी हाथ से जाता रहा तो क्या होगा?
हुजूम-ए-यास से दिल घुट गया शब-ए-हिज्राँ
ज़ियादा हश्र में कुछ और क्या बपा होगा?
लिए तो जाता है मुझको कशां कशां ऐ दिल!
बिखर गया मैं भरी बज़्म में तो क्या होगा?
ख़बर है गर्म सर-ए-दार मेरे जाने की
सुना है आज मुहब्बत का फ़ैसला होगा!
कुरेद लेता हूँ यादों की राख मैं अक्सर
यहीं कहीं से धुआँ इश्क़ का उठा होगा!
ख़मोशी आप की बे-वज़ह हो नहीं सकती
नज़र ने कुछ कहा और दिल ने कुछ सुना होगा!
यूँ ही तो बज़्म से बे-आबरू नहीं निकला
ज़रूर कुछ निगह-ए-शौक़ ने कहा होगा!
रखा है क्या भला, क्यों पूछते हो "सरवर" को
दिवाना मर गया,तुमने भी तो सुना होगा!