भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिण ढाळै आयो आज आंख सूं बारै औ / सांवर दइया
Kavita Kosh से
जिण ढाळै आयो आज आंख सूं बारै औ
मन-पीड़ बतासी जग नै चढ चौबारै औ
लागै दुख-धाड़ेती म्हांनै कोनी छोडै
सांस लेवतां ई होग्यो म्हांरै लारै औ
कीं देवाळ नईं तो ई म्हैं चावां थांनै
मन छेकड़ मन है कोनी रैवै सारै औ
आ मानी एक भाठै सूं टूटै कोनी गढ
जतन सूं राख कदै काम आसी थारै औ
बीज है बीज ओळख इण री अखूट ताकत
माटी री आं पुडतां नै कोनी धारै औ