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जिण दिन सूं / नीरज दइया
Kavita Kosh से
सनीमा मांय
किणी रै मरण माथै
होंवता देख’र रोवा-कूकी
म्हैं टीखळ उडावतो
म्हनै लखावता
बै चितराम
बेतुका-फरजी अर नाटकिया।
पण जिण दिन सूं
देख्यो है म्हैं
परतख मरण जीसा रो
टीखळ ई भूलग्यो।
जा कदैई-कठैई
दिख जावै- मौत
का किणी रै मरण रा आसार
म्हैं गळगळो हो जावूं
हरख नै धर देवै
अडाणै- ओळूं
अर भळै भुगतूं म्हैं
एक भुगत्योड़ी पीड़!
परतख पीड़!!