जितना प्यार दिया है तुमने / ऋषभ देव शर्मा
जितना प्यार किया हैं तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
जो अधिकार दिया है तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
कहीं किसी बटिया पर बैठा
रोकर दिवस बिता लेता मैं
तुम न थामते यदि ऊंगली तो
अनगिन शूल चुभा लेता मैं
जो आभार किया है तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
‘जो अधिकार दिया हैं तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
एक किरण के अभिलाषी को
रूप राशि का चषक भर दिया
जन्म जन्म एक सूने मन में
नए नगर का हर्ष भर दिया
जो उपकार किया है तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
जो अधिकार दिया है तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
नहीं ज्ञात था महानगर में
मुझे अकेला कर जाओगे
पहले एक उबलता चुंबन
फिर अंगारे धर जाओगे
जो उपहार दिया है तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था
जितना प्यार किया है तुमने
मैं तो इसके योग्य नहीं था