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जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया / तारा सिंह
Kavita Kosh से
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- तुमने मुझको जैसा रखा, वैसा मैं रहा
- अपने तन को तिल – तिल जलाकर
- तुम्हारे आगे रोशनी किया
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- कभी साँसों का हार बनाया
- कभी तन, धूप, दीप जलाया
- कभी आँखों से आँसू लेकर
- तुम्हारे मंदिर को धोया
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- कभी अनल जल स्नान किया
- कभी काँटों पर सोया
- फाड़कर अपनी पुरानी धोती
- ओढ़ा और ओढ़ाया
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- तुम्हारे चिन्ह अनेक मिले
- पर तुम न पड़ी, कहीं दिखाई
- घर त्यागकर आज मैं
- तुम्हारे शरण में आया
- जवानी बीती, बुढ़ापा आया
- फिर भी तुम से कभी कुछ कहा
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- कभी साँसों का दीप जलाया
- कभी तन का भोग लगाया
- कभी अपने व्यथित हृदय को
- गले लगाकर समझा और समझाया
- कभी दुख की दरिया में डूबकर
- सुख- माया के संग खेला
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- कभी तुम्हारे चौकठ पर सर पटका
- कभी अपने लिए दुआ माँगा
- कभी बेबसी और लाचारी सुनाकर
- बिलख - बिलखकर रोया
- कभी अपने भाग्य पर जी भर हँसा
- कभी दूसरे को भी हँसाया
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- कभी तो तुमने ये कहा , जीने का ध्येय
- कृति नहीं, धन नहीं ,सुख नहीं, दर्शन नहीं
- क्या कभी मैंने तुमसे इसके लिए हठ किया
- तुमने जैसा चाहा, मैंने वैसा जीया
- जब- जब दुख- विष का प्याला भेजा
- मैंने अमृत समझ चुपचाप पीया
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया
- पहनूँगी मैं मुक्ता की माला
- चाँदी का दे दो मुझको दोशाला
- रत्न – जडित महल हो मेरा
- जहाँ बजता हो ढाक - मजीरा
- ऐसा कुछ, मैंने तुमसे कभी माँगा
- तुमने जैसा रखा, मैं वैसा रहा
- जितना मुझसे हो सका, उतना मैंने किया