जितने क्षण बीते हैं तुम्हारे बिना / रवीन्द्र भ्रमर
जितने क्षण बीते हैं तुम्हारे बिना
उन सबमें केवल प्रणाम तुम्हें भेजे हैं ।
सपने में संग संग
जगने में परदेस,
छिन सम्मुख छिन ओझल
छलिया के भेस,
जितने क्षण भटके हैं तुम्हारे बिना
उनमें साधों के विश्राम तुम्हें भेजे हैं ।
ओसों सुबहें रोईं
दियों जली शाम,
तारों रातें टूटी —
दिन गिनते नाम,
जितने क्षण तड़पे हैं तुम्हारे बिना
उन सबमें आँसू अविराम तुम्हें भेजे हैं ।
पथ अगोरती आँखें
पथराई हैं,
अवधि जोहती बाँहें
अकुलाई हैं,
जितने क्षण छूटे हैं तुम्हारे बिना
उन सबमें वय के विराम तुम्हें भेजे हैं ।
टूट चले वंशी स्वन
रुक चली पुकार,
टेरते तुम्हें, मेरे —
गीत गए हार,
जितने क्षण टूटे हैं तुम्हारे बिना
उनमें सांसों के परिणाम तुम्हें भेजे हैं ।
जितने क्षण बीते हैं तुम्हारे बिना
उन सबमें केवल प्रणाम तुम्हें भेजे हैं ।।