भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितने दिन ख़ुश रह सकें ग़लतफ़हमी में / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
जितने दिन
ख़ुश रह सकें ग़लतफ़हमी में
घर के बच्चे
बेहतर
उम्र बहुत जल्द उनकी हँसी छीन लेगी
तब अपने बच्चों के
बारे में इसी ग़लतफ़हमी में रहने
की प्रार्थना
वे भी कुछ इसी तरह
हर खिन्नता में ख़ुश रह कर करेंगे।