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जितने भी गीत सिखाने हों / रामगोपाल 'रुद्र'

जितने भी गीत सिखाने हों, जल्दी ही ज़रा सिखा दो!

कुछ ठीक नहीं, कब चल दूँ मैं, अब ऐसा ही लगता है,
ये गीत सुनाने हैं जिसको, शायद अब तक जगता है!
जो भी सन्‍देश लिखाने हों, जल्दी ही ज़रा लिखा दो!

यह रूप-रंग का धाम तुम्हारा ऐसा चित्रालय है
सब देख सकूँ सब आँक सकूँ, उफ! इतना कहाँ समय है!
अब जो भी चित्र दिखाने हों, जल्दी ही ज़रा दिखा दो!