जिनके इंसानियत के नाते हैं।
बस वफ़ा भी वही निभाते हैं॥
सत्य की भूमि कर्म के हल से
भूमि समतल चलो बनाते हैं॥
बह रही प्यार की हवाओं में
मन-पतंगे ज़रा उड़ाते हैं॥
है न पूछा जिन्हें जमाने ने
बढ़ के उनको गले लगाते हैं॥
शिष्य एकलव्य-सा नहीं मिलता
द्रोण हर ओर नजर आते हैं॥
जो न हमदर्दियों के हैं पोषक
व्यर्थ आँसू बहुत बहाते हैं॥
दूर तक सिलसिले जफ़ाओं के
लोग जिस को वफ़ा बताते हैं॥