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जिनके शीशे के घर रहे थे वहाँ / जहीर कुरैशी
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जिनके शीशे के घर रहे थे वहाँ
वे ही पत्थर से डर रहे थे वहाँ
एक कमरा धुएँ से बोझिल था
और वे रात भर रहे थे वहाँ
जिस शहर को न भूख मार सकी
लोग नफर से मर रहे थे वहाँ
रमता जोगी था बहता पानी था
किन्तु दोनों ठहर रहे थे वहाँ
लोग कानून पढ़ रहे थे इधर
और अपराध कर रहे थे वहाँ