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जिनगी अपन सम्हारीं / सतीश मिश्रा
Kavita Kosh से
आवऽ! मिलजुल बात बिचारी
जिनगी अपन सम्हारीं ना
कच्चा घइला सहे न पानी
पक्कल लकड़ी बने मल्हानी
जिनगी इहे कहानी ना।
जब ले उमर रहे बचकानी
शादी बड़ी बेमानी ना।
बेटा के एक्कइस लगे दऽ
बेटी पर उन्नइस चढ़े दऽ
पहिले पढ़े-बढ़े दऽ ना
कबजगर चारो कांध बने दऽ
सुधि के जोत बरे दऽ ना।
जिनगी सुखी रहे के मन्तर
दू बुतरू के पेन्हऽ जन्तर
रखिहऽ उमर में अन्तर ना
बुतरू गेदा-गेदी जिनकर
बस्तर उनकर तन पर ना।