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जिनगी के संगी का कहेना! / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
मुनगा के डारा बोले मैना,
गुरतुर-गुरगुर बैना,
जिनगी के संगी का कहेना!
है ना... जिनगी के संगी...
जिनगी में सत् करम कर ले,
मनखेपन हित धरम कर ले।
सब अपने, नहीं कोनो बिरान,
ऊँच-नीच के भरम हर ले॥
जग, कुटुम-कबीला सगा-सैना
जिनगी के संगी का कहेना?
मनुख जोनी तैं पाये जाग,
धन-धन तोर पुरबल के भाग।
जतन कर कभू झन उलरय,
मया-पिरित के ठाहिल ताग॥
करम हवे तोर जिनगी बर ऐना
जिनगी के संगी का कहेना!
सत-नीयत ला राख पाज के,
जेन हे तेन खा बाँट-बिराज के।
सुख बाँट म सुख मिले संगी,
सिरतोन, काली के न आज के॥
माया-मोहनी मटकावय नैना,
जिनगी के संगी का कहेना!