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जिनमें एहसास के ठहराव थे गहरे वाले / अलका मिश्रा

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जिनमें एहसास के ठहराव थे गहरे वाले
अब नज़र आते नहीं लोग वो पहले वाले

दर्द के गहरे समंदर से निकलने वाले
अब ये मोती नहीं आँखों में ठहरने वाले

होश कब ले के गए मेरे न मालूम चला
उसके नैना मेरे नैनों में उतरने वाले

उसने जाते हुए मुड़ कर नहीं देखा मुझ को
दिल को धड़का ये हुआ हम हैं बिछड़ने वाले

ग़म ज़दा वक़्त में बेनूर न हो जाएं कहीं
दौरे हाज़िर में मसाइल से गुज़रने वाले

ख़्वाहिशें,ख़्वाब, बुलन्दी है फ़क़त साँसों तक
साथ ले जाते नहीं कुछ भी तो जाने वाले