भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिनावर अर पागल / दुष्यन्त जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रीस में मिनख
जिनावर नीं
पागल बण सकै

पशु कन्नै
सबद नीं
संवेदना रौ
अकूत भंडार हुवै

पण पागल
भूंडै सबदां रौ पिटारौ
अर
दया रौ पात्र।