भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिनि थोथरा पिछोरे कोई / रैदास
Kavita Kosh से
।। राग सोरठी।।
जिनि थोथरा पिछोरे कोई।
जो र पिछौरे जिहिं कण होई।। टेक।।
झूठ रे यहु तन झूठी माया, झूठा हरि बिन जन्म गंवाया।।१।।
झूठा रे मंदिर भोग बिलासा, कहि समझावै जन रैदासा।।२।।