भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिन्दगी अतुकान्त कविता / सतीश मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साज, सुर सब छन्द भूतल, राग छेडूँ मीत कइसन
जिन्दगी अतुकान्त कविता, पढ़ रहल ही गीत जइसन
चाह करुआ तेल हो गेल
आस के रेपसिड पिअऽ ही
नून नीअन चैन भागित
सांस पर पेबन सिअऽ ही
हार के सब दाव अप्पन, मुसकुरा ही जीत अइसन
जिन्दगी अतुकान्त कविता, पढ़ रहल ही गीत जइसन
सूर्य कुनती में अझुर के
फुर्र से आवे, फुर्र से भागे
दलदलाइत कोई अंजुरी
घाम अब केकरा से माँगे
देख के बोरसी भी हम्मर, पूस के मुँह तीत अइसन
जिन्दगी अतुकान्त कविता, पढ़ रहल ही गीत जइसन
अब तो भौंरा परशुराम के
जाँघ में घुस फुरफुरा हे
आँख के पुतरी में हम्मर
राग दीपक सुरसुरा हे
कृष्ण घायल, पार्थ मुसकित-हाय, हो गेल रीत कइसन।
जिन्दगी अतुकान्त कविता, पढ़ रहल ही गीत जइसन
दोम देऊँ गाछ हम भी
जेठ के हाही कहऽ हे
धाह पर भादो बनेला
अब बेअक्खर मन चहऽ हे
खून टपकित ठेंस ऊपर हम ही तइयो सीत अइसन
जिन्दगी अतुकान्त कविता, पढ़ रहल ही गीत जइसन