Last modified on 4 फ़रवरी 2009, at 19:18

जिन्दगी आहत है आँगन में / जहीर कुरैशी


जिन्दगी आहत है आँगन में
एक पानीपत है आँगन में

हर समय कुछ सीख देने की
बाप को आदत है आँगन में

हर समय तक ये बात शाश्वत है
नील नभ की छत है आँगन में

गर्भ की अपराधिनी ’बेटी’
सब की आगे नत है आँगन में

कल उसे सड़कें भी देखेंगी
जो महाभारत है आँगन में